अवतार सिंह दीपक (प्रिं.)
“आप! हैडमास्टर साहब! धन्य हो गए हम, भाग कुल गए! आओ, आ जाओ…ओए छोटू, कुरसी साफ कर के ला, यहाँ मेरे पास।… आप बताइए क्या लोगे? ठंडा या गर्म?” प्रकाशक कश्मीरी लाल हैडमास्टर साहिब का स्वागत करते हुए कह रहा था।
“मेहरबानी! किसी चीज की जरूरत नहीं।” हैडमास्टर साहिब ने जवाब दिया, “इधर से गुज़र रहा था, सोचा
आपके दर्शन करता जाऊँ। और सुनाइए, काम-धंधा कैसा चल रहा है?”
“आपकी कृपा है जी। इस बार तो सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। पुस्तकें छापना तो एक
जूआ है, हैडमास्टर साहब। पर इस बार तो पासा सीधा पड़ता दिख रहा है। अच्छे लेखक भी
तो किस्मत से ही मिलते हैं। इस बार विद्यार्थियों के लिए विज्ञान की चार पुस्तकें
प्रकाशित की हैं। ये चारों पुस्तकें दुग्गल जालंधरी से लिखवाई हैं। लेखक ने बहुत मेहनत
की है। छापने में हमने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।” कश्मीरी लाल ने रौ में आते हुए कहा, “आफसैट पर छपे चार-रंगे चित्र देखकर पाठक की भूख उतरती है। सिनेमा संबंधी इस
पुस्तक ‘बोलती तस्वीरें’ ने तो राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। सरकार ने इसकी पाँच हजार प्रतियां खरीदी
हैं। ‘बिजली की बातें’ पुस्तक को तो राज्य सरकार ने आठवीं कक्षा में सप्लीमेंट रीडर लगा दिया है।
कोई भी पुस्तक खोल के देखिए, विज्ञान के नीरस मैटर को भी जीवन की उदाहरणों से
मनोरंजक बना दिया है। हर बात बच्चे के दिमाग में झट से बैठ जाती है। कोई पुस्तक
खोल कर तो देखिए।”
“सच में ही पुस्तकें तो कमाल की हैं। ये पुस्तकें तो लाइब्रेरी का श्रृंगार
बनेंगी। कीमत भी वाजिब है।” हैडमास्टर साहिब ने
तारीफ की।
“हैडमास्टर साहब, ये बताओ पैप्सी लोगे या चाय? गर्मी बहुत है, पैप्सी ठीक रहेगी।” और
उसने नौकर को आवाज लगाई, “ओए छोटू, भाग कर अमीचंद की दुकान से ठंडी पैप्सी लेकर आ।”
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पैप्सी आ गई तो कश्मीरी लाल बोला, “हाँ तो हैडमास्टर साहब आप आर्डर
कब भेज रहे हो?”
“कैसा आर्डर?”
“अपने स्कूल की लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों का।”
“पर कश्मीरी लाल जी, मैं तो पिछले सप्ताह रिटायर हो गया हूँ।”
‘रिटायर’ शब्द सुनते ही हाथ में
पकड़ी ठंडी बोतल उसे गर्म लगने लगी।
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