Sunday 24 May 2015

नैसर्गिक आनंद



रणजीत आज़ाद काँझला

इंद्र देवता प्रसन्न होकर रिमझिम बारिश से धरती को नहला रहे थे। झोंपड़ियों से बच्चे बाहर निकल कर वर्षा का आनंद उठा रहे थे। वे खुशी में एक-दूसरे को छेड़कर भाग रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे भगवान स्वयं इन बच्चों में प्रवेश कर आनंद ले रहे हों।
सामने की कोठी में से एक बच्चा आया ओर बारिश में नहाने लग पड़ा। जैसे ही बच्चे की माँ की नज़र उस पर पड़ी, वह बोली, बेटा टिंकू अंदर आ जा। क्यों बारिश में भीग कर गंदा हो रहा है?…आ अंदर आकर अपनी साइकिल चला ले।
नहीं मम्मी! मुझे अंदर नहीं आना। मैं तो यहीं बारिश में खेलूँगा। मुझे बड़ा मजा आ रहा है सबके साथ खेलकर। साइकिल तो मैं बाद में भी चला लूँगा।टिंकू ने बारिश में खेल रहे बच्चों में शामिल होते हुए कहा।
यह सुनकर टिंकू की माँ के चेहरे पर भी मुस्कराहट फैल गई।
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Sunday 17 May 2015

अनिश्चय



मित्रसैन मीत

        केरल निवासी जोसफ सीमा सुरक्षा बल में हवलदार है। उग्रवाद पर काबू पाने के लिए उसकी बटालियन को पंजाब भेजा गया है। वह भी साथ आया है। खाना खाते समय बटालियन के अधिकारियों ने पंजाब समस्या पर रोशनी डाली थी। जवानों को बताया गया था कि पंजाब में मुख्य रूप में दो कौंमें बसती हैं। बहुसंख्यक सिख हैं। वे अल्प संख्यक हिन्दुओं को बाहर निकालकर खालिस्तानबनाना चाहते हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वे हिंसा पर उतर आए हैं। नित्य हिन्दुओं के कत्ल होते हैं। हिन्दुओं में डर है। दोनों सम्प्रदायों में बेहद नफ़रत है। जवानों को उग्रवाद पर काबू पाना है,  मजलूमों की रक्षा करनी है।
      पहले दिन जोसफ की ड्यूटी एक बारात की सुरक्षा पर लगी। विवाह हिन्दू लड़की का था। ऐसे अवसर पर उग्रवादियों की ओर से वारदात करने का खतरा बना रहता है।
      जोसफ मुकाबला करने के लिए तैयार था।
      बारात आई तो जोसफ चकरा गया। दुल्हा हिन्दू था और उसका मामा सिख। दुल्हे के दोस्त नाच रहे थे। नाचने और रुपए वारने वालों में आधे से ज्यादा सिख थे। बारात में सिखों की संख्या आटे में नमक की तरह नहीं खिचड़ी में घी की तरह थी।
      अगले दिन उसकी ड्यूटी पुलिस मुकाबले में मरे एक नौजवान का दाह संस्कार करवाने में लगी। अर्थी देखकर वह चक्कर में पड़ गया। अर्थी को कंधा देने के वाले चार लोगों में से दो हिन्दू थे। दीवार से सिर टकरा-टकरा कर बेहाल होने वाला लड़के का मौसा भी हिन्दू था। अर्थी के साथ हिन्दू दाल में कंकड़ों की तरह नहीं रड़कते थे बल्कि घी में शक्कर की तरह थे।
      आज उसकी ड्यूटी चौंक में है।
      यहां वह और भी असमंजस में पड़ गया है। मोटर साइकिल वाला सिख है, पीछे बैठने वाला हिन्दू। जीप का चालक हिन्दू है और बीच में बैठा परिवार सिख। जोसफ हैरान है। उसे समझ में नहीं आ रहा कि पंजाब के बारे में वह स्वयं असमंजस में है या दिल्ली में बैठे उसके अधिकारी।
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Friday 8 May 2015

काँटे



मंगत कुलजिंद

शुक्र है भगवान का, बच्चे को समय पर डाक्टरी सहायता मिल गई, नहीं तो पता नहीं…मित्र का धन्यवाद करते हुए बलदेव घर से अस्पताल तक के सफर को याद कर काँप उठा।
बलदेव के बारह वर्ष के बेटे को अचानक दौरा पड़ गया था। वह बेटे को कार में डाल पत्नी समेत अस्पताल की और भागा। मुख्य सड़क पर आकर गाड़ी भीड़ में फँस गई। पीछे मुड़ने को भी राह नहीं था। बहुत हार्न बजाया, लोगों की टांगों-टखनों से गाड़ी का बंपर भी लगा दिया, लोगों को गालियाँ भी दीं, पर किसी ने राह नहीं दिया। पीछे सीट पर बेटे को लिए बैठी पत्नी रो रही थी और ‘जल्दी चलो, जल्दी चलो!की गुहार लगा रही थी।
मुख्य सड़क के बीच में बनी ‘नीम वाले बाबे की समाधि’ पर लोगों की भारी भीड़ जुटी थी। कुछ लंगर की रोटी खाने के लालच में, नौजवान खरमस्तियाँ करने को और औरतें अधिकतर धन-दौलत, सुख-सुविधाएँ व औलाद की प्रप्ति की तमन्ना ले कर आईं थी। प्रत्येक वीरवार को यहाँ यूँ ही भीड़ जुटती है। पहले-पहल नगर निगम ने दो-तीन बार इस समाधि को यहाँ से हटाने की कोशिश की थी। पर कुछ लोगों के विरोध व राजनैतिक लोगों के दखल के कारण सफलता नहीं मिल पाई।
इस मुसीबत की घड़ी में उधर से गुज़र रहे बलदेव के मित्र ने लोगों को इधर-उधर कर कार के लिए राह बनाया तथा बच्चे को अस्पताल पहुँचाया।
यार…लोग तो वैसे ही पागल हुए फिरते हैं…भेडें किसी जगह की!…सालो सड़क तो न रोको…।बलदेव अभी भी मन का गुबार निकाल रहा था।
सब से बड़ा पागल तो तू ही है। याद कर, किसी समय मैंने तुम्हें कहा था कि सड़क के बीच में बन रही यह समाधि एक दिन लोगों की जान की दुश्मन बन जाएगी।जैसे ही मित्र ने कहा बलदेव को याद आ गया कि बारह साल पहले उसने समाधि पर चढ़ावा चढा कर समाधि बनाने में योगदान दिया था।
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Friday 1 May 2015

बेटी



 मोहन सिंह सहोता

        मुझे और मेरे दोस्त रामलाल को एक विवाह के रिसैप्शन में जाना था। हम बस पकड़ने के लिए बस स्टैंड पर पहुंचे। वहां बस की इंतजार करते लोगों में पन्द्रह-सोलह साल की एक लड़की भी थी ! गोरी-सी, खूबसूरत नैन-नक्श,लम्बा कद, सेहतमंद शरीर। मेरे दोस्त रामलाल की नज़र उस पर पड़ी तो जैसे अटककर रह गई। वह उस तरफ लगातार देखता ही जा रहा था। अगर उसकी नजर एक पल भी हटती तो दूसरे पल फिर लड़की की तरफ होती।
      उस लड़की ने लाल रंग की पैंट और सफेद टी-शर्ट पहनी हुई थी। उसने काला स्कार्फ सिर पर बांध था और सफेद फ्लीट पांव में डाले हुए थे। आंखों पर उसने हल्के नीले रंग वाली ऐनक लगाई थी।
      अपने दोस्त रामलाल को पन्द्रह-सोलह साल की लड़की को निहारते देखकर मुझे परेशानी-सी ही नहीं हुई, बल्कि मैं बहुत शर्म महसूस कर रहा था। लगता था कि लड़की को भी रामलाल के देखने का पता लग गया था। उसने भी कई बार मुड़कर रामलाल की तरफ देखा और गुस्से से मुंह मोड़ लिया।
      आखिर लड़की से रहा न गया। वह बोली, ‘‘शर्म नहीं आती सफेद दाढ़ी को!’’
      रामलाल का जैसे इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं था। वैसे वह अब भी उस तरफ ही देख रहा था।
      लड़की की बात सुनकर बस की इंतजार करते और लोग भी इद्दर देखने लगे। मेरी परेशानी और बढ़ गई। लड़की की परेशानी के साथ ही शायद उसका गुस्सा भी बढ़ गया था।
      मैंने आगे बढ़कर रामलाल को बांह से पकड़कर झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’
      रामलाल जैसे नींद से जागा हो। वह अभी भी लड़की की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं सोच रहा था कि अगर इस तरह के कपड़े इसकी हम उम्र मेरी बेटी ने पहने हों तो वह कितनी अच्छी लगे।’’
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