Sunday 21 September 2014

निमंत्रण-पत्र



                                            

अन्नदाता



प्रीत नीतपुर

मैंने साइकिल पक्की सड़क से कच्चे राह पर उतारा। थोड़ी दूर आगे गया तो देखा, बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का साइकिल की चेन चढ़ाने के काम में उलझा हुआ था। उसके पास जाकर मैंने अपना साइकिल रोका तथा उसकी मदद करने के ख्याल से कहा, चढ़ा लेगा कि मैं चढ़ाऊँ?
चढ़ नहीं रही…।पसीने से लथपथ लड़के ने उदासी भरी आवाज में कहा।
मैंने अपना साइकिल खड़ा किया और एक मिनट में ही उसके साइकिल की चेन चढ़ा दी।
लड़के की आँखें खुशी में चमक उठीं।
किधर को चला?मैंने स्वाभाविक ही पूछ लिया।
बापू खेत में हल चला रहा है, उसकी रोटी लेकर जा रहा हूँ।
रोटी…!!लड़के के पास न छाछ-पानी वाला डोलू था, न ही रोटियों वाला कपड़ा। फिर रोटी कहाँ थी?
मैंने हैरानी प्रकट करते हुए पूछा, रोटी कहाँ है?
लड़के ने अपनी घसी-सी मटमैली पैंट की दहिनी जेब थपथपाते हुए कहा, यह रही मेरी जेब में।
मैंने ध्यान से देखा, उसकी पैंट की जेब थोड़ी-सी ऊपर को उभरी हुई थी।
लड़के ने साइकिल के पैडल पर पैर रखा। लड़के के पाँव नंगे थे।
मैं साइकिल पर जा रहे लड़के को देख रहा था। उसकी पैंट की जेब में से रोटी पर लिपटा कागज़ बाहर को झाँक रहा था।
मेरे मुख से स्वाभाविक ही निकल गया, अन्नदाता!…और रोटी…!
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Sunday 14 September 2014

भिखारिन



श्याम सुन्दर अग्रवाल





बच्चा भूखा है, कुछ दे दे सेठ! गोद में बच्चे को उठाए एक जवान औरत हाथ फैला कर भीख माँग रही थी।
इस का बाप कौन है? अगर पाल नहीं सकते तो पैदा क्यों करते हो?सेठ झुंझला कर बोला।
औरत चुप रही। सेठ ने उसे सिर से पाँव तक देखा। उसके वस्त्र मैले तथा फटे हुए थे, लेकिन बदन सुंदर व आकर्षक था। वह बोला, मेरे गोदाम में काम करोगी? खाने को भी मिलेगा और पैसे भी।
भिखारिन सेठ को देखती रही, मगर बोली कुछ नहीं।
बोल, बहुत से पैसे मिलेंगे।
सेठ तेरा नाम क्या है?
नाम! मेरे नाम से तुझे क्या लेना-देना?
जब दूसरे बच्चे के लिए भीख माँगूंगी तो लोग उसके बाप का नाम पूछेंगे तो क्या बताऊँगी?
अब सेठ चुप था।
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Saturday 6 September 2014

संबंध



निरंजन बोहा




अपनी बहन की सहेली रीमा उसे अच्छी लगती। जब वह उस की बहन के पास बैठी होती तो वह बहाने बना वहाँ चक्कर लगाता रहता। रीमा भी उसकी चोर-निगाह का ध्यान रखने लग पड़ी थी। लेकिन वह सदा अपनी आँखें नीचे झुकाए रखती।
पिछले कुछ दिनों से रीमा उनके घर नहीं आ रही थी। उसका मन करता कि वह अपनी बहन से रीमा की गैरहाज़री का कारण पूछे। पर बड़ी बहन से ऐसा पूछने का साहस वह नहीं कर सका। वह यह सोच कर बेचैन था कि कहीं रीमा उसकी चाहत की बात उसकी बहन को न बता दे। उसकी बहन रीमा के घर अक्सर जाती रहती थी।
एक दिन वह अपनी बहन के साथ कैरम खेल रहा था। कमरे में एक सुंदर नौजवान आया। उसने आते ही उसकी बहन की ओर देखते हुए कहा, इधर रीमा तो नहीं आई?
नहीं, इधर तो नहीं आई…आप बैठो, मैं चाय बनाकर लाती हूँ।उसकी बहन ने विशेष ज़ोर देकर उस नौजवान को बैठने के लिए कहा। बहन ने उस नौजवान का उससे परिचय भी करवाया, भैया, ये रीमा के भाई हैं, पवन जी।
उसे लगा जैसे रीमा के भाई को देखकर उसकी बहन की आँखों में विशेष चमक आ गई है। उस दिन के बाद रीमा का उनके घर आना-जाना जारी रहा। पर अब वह जहाँ तक सँभव होता उधर जाने से बचता, जिधर उसकी बहन साथ बैठी होती। अपने घर में रीमा की उपस्थिति उसे बुरी लगती। वह दिन-रात सोचता रहता कि दोनों सहेलियों के संबंधों को कैसे ख़त्म करवाए।
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