Sunday 5 May 2013

दोमुँहे



अश्वनी खुडाल

डॉक्टर वर्मा एक छोटे से कसबे में स्थापित होने के बाद वहाँ अपना बड़ा अस्पताल बना रहा था। एक दिन वह निर्माण एवं अस्पताल संबंधी कुछ आवश्यक सामान के लिए बड़े शहर गया। वापसी पर अपने डॉक्टर मित्र कृष्ण मनचंदा से मिलने चला गया। उसे देखते ही मनचंदा बोला, आ भई वर्मा! यार तू कहाँ छोटे से कसबे में घिसे जा रहा है। शहर में क्यों नहीं आ जाता। अब तो सुना है तू वहाँ अस्पताल बना रहा है।
उसकी बात सुन वर्मा बोला, आपको नहीं पता मनचंदा साहब, पहले मुझे भी नहीं पता था। वहाँ रहा तो पता चला। यहाँ शहर से वहाँ प्रैक्टिस करनी बहुत आसान है। और वहाँ भी अब पैसे की कोई कमी नहीं। ज़माना बदल रहा है, अपने पेशे में कितनी तरह का डर रहता है। वहाँ किसी तरह का भय नहीं। लोग अधिक पढ़े लिखे नहीं। अपना व्यापार लोक-सेवा के नाम पर चलाओ। यहाँ तो आपने लिंग-टैस्ट करना है तो, डर ही डर। पर वहाँ खतरा बहुत कम है…और अब तो कुंवारी लड़कियाँ भी…! बिना डर के अच्छे पैसे। अपने बच्चों का भविष्य भी तो बनाना है।कहकर वर्मा हँसा।
डॉक्टर मनचंदा उसकी ओर हैरानी से देख रहा था।
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