Monday 29 June 2015

फेसबुक




जगदीश राय कुलरियाँ


मेरी फेसबुक की फ्रेंडलिस्ट में औरों के अतिरिक्त मेरी छात्राएँ भी शामिल हैं। वे ऑन लाइन कभी-कभार मुझसे मार्गदर्शन भी प्राप्त करती रहती हैं। अभी मैने फेसबुक ऑन की ही है कि फटाफट अपडेट्स आने शुरू हो गए। मेरी एक छात्रा रिंपी ने आज फिर अपनी प्रोफाइल-फोटो बदल दी है। सौभाग्य से वह ऑन लाइन भी है।
मैसेज आता है—‘नमस्कार सर!’
‘नमस्कार! क्या बात आज फिर फोटो चेंज कर डाली, किसकी है यह?’ मैने पूछा।
‘सर, हीरोइन है, कैटरीना कैफ।’
जवाब पढ़ते ही सिर घूमने लग जाता है कि आजकल के बच्चों को क्या हो गया है?
मैं फिर पूछता हूँ—‘बेटा, इसकी फोटो क्यों लगाई है?’
‘सर, कोई हमारी फोटो का मिसयूज न कर ले, इसलिए लगाई है।’—उसने लिखा है।
‘वह तो ठीक है बेटे, मगर आप सिर्फ एक्ट्रेस की फोटो ही क्यों लगाते हो? मदर टैरेसा और किरण बेदी की क्यों नहीं?’
मेरे इतना लिखते ही रिंपी ऑफ लाइन हो गई।
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Monday 22 June 2015

एकांतवास



हरभजन सिंह खेमकरनी

शहर में रह रहे बेटे के पास गई मुख्त्यार कौर अकसर आठ-दस दिन बाद वापस गाँव लौट आती। फिर धूल-मिट्टी से भरे घर की सफाई में लग जाती। वृद्ध शरीर जल्दी ही थक जाता। अड़ोस-पड़ोस में रहने वाली उसकी देवरानी-जेठानी ने उसे कई बार कहा कि घर की चाबियाँ उन्हें दे जाया करे, वे घर की सफाई करवा दिया करेंगी। वे कहीं घर पर ही कब्जा न कर लें, इस डर से वह उन्हें चाबियाँ न देती।
इस बार जाते समय वह कह गई थी कि अब वह शहर में ही रहेगी। परंतु कुछ दिनों बाद ही लौट आने के कारण वह चर्चा का विषय बन गई। लोग कह रहे थे पुत्र-वधु से नहीं बनी होगी, खान-पान पर टोका-टाकी के चलते दोनों में खटपट हुई होगी।
रिश्ते में बहू लगती मनिंदर कौर ने चाय का गिलास मुख्त्यार कौर की ओर बढ़ाते हुए कहा, प्रणाम चाची, तुम तो कहती थी कि अब बेटे के पास ही रहना है, क्या बात बहू ने सेवा नहीं की?”
नहीं बेटी, ऐसी बात नहीं। बस दिल ही नहीं लगा वहाँ।
बैठे-बिठाए सब कुछ मिलता होगा। दिल तो घर के लोगों में लग ही जाता है चाची।
ये बात तो तेरी ठीक है। पर क्या बताऊँ, बेटा-बहू सुबह के नौकरी पर गए शाम पाँच-छः बजे घर लौटते। फिर बच्चों के साथ घूमने निकल जाते। बच्चे भी स्कूल से लौट कर ट्यूशन पर चले जाते या फिर टी.वी. देखते रहते। रोटी दोनों वक्त नौकर कमरे में दे जाता। किसी के पास बात करने के लिए समय ही नहीं, बस कभी-कभार कोई कमरे में आकर खड़े-खड़े ही मिल जाता। अड़ोस-पड़ोस में जाने का हुक्म नहीं, दो घड़ी दुःख फरोले तो किसके साथ।
चाची, शहर में आस-पड़ोस में भी किसी के पास समय नहीं होता कि अपनी तरह बैठ कर दुःख-सुख सांझा करे। उन्हें तो पता ही नहीं होता कि उनके पड़ोस में रहता कौन है।
यही सोच कर वापस आ गई हूँ बेटी। यहाँ तो मिलने-जुलने वालों की आवाजाई लगी रहती है। दिन हँसते-खेलते बीत जाता है। दुःख-सुख में तुम्हारा आसरा है। मुख्त्यार कौर के मन की पीड़ा उसके चेहरे से झलक रही थी।
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Monday 15 June 2015

निश्चिंत




डा. श्याम सुन्दर दीप्ति

रेणु अपने पति राजेश के साथ माँ से मिलने जा रही थी।
रेणु की शादी को लगभग एक महीना हो गया था। उसने शादी से पहले ही राजेश को एक बात स्पष्ट कर दी थी कि शादी के बाद वह अपनी माँ को अकेली नहीं छोडेगी। वह ओर माँ, दो ही सदस्य तो थे घर में। शादी के बाद उसकी माँ घर में बिलकुल अकेली रह जाएगी।
राजेश ने कहा था, मैं समझता हूँ तुम्हारी भावनाओं को, यह भी कोई कहने वाली बात है। यह तो हमारा फर्ज बनता है।
वे जब घर पहुँचे, रेणु की माँ घर के दरवाजे पर खड़ी चावला साहब को ‘बाय-बाय’ कर रही थी। उन्हें देख चावला साहब कार स्टार्ट करते-करते रुक गए।
राजेश व रेणु से मिल तथा उनका कुशल-क्षेम जान वे चले गए।
चावला साहब रेणु के पिता के करीबी मित्र रहे हैं। रेणु के पिता की मृत्यु के पश्चात उनका संपर्क इस परिवार से बना रहा। रेणु के विवाह में राजेश को भी चावला साहब की सरगर्म भूमिका का एहसास हुआ था।
जब रेणु की माँ उनके लिए पानी लेने गई तो राजेश ने कहा, रेणु, चावला अंकल को ‘बाय-बाय’ करते वक्त मम्मी की आँखें देखी थी?
क्या था आँखों में? रेणु एकाएक घबरा-सी गई।
खुशी ओर वियोग की मिली-जुली झलक थी।राजेश का जवाब था।
रेणु कुछ नहीं बोली। वह विचारमग्न हो गई कि राजेश की इस बात का क्या अर्थ है।
माँ से मिलने के पश्चात वे लौट आए थे, पर रेणु के मस्तिष्क में राजेश की कही बात घूम रही थी। वह सोचती रही– राजेश ने मम्मी के बारे में ऐसा क्यों कहा?
रात को बिस्तर पर लेटने के पश्चात रेणु ने राजेश से पूछा, क्या कह रहे थे तुम सुबह? तुमने मम्मी की आँखों में क्या देखा?
ओह! कुछ नहीं! तुमने कौन सा पहले नहीं देखा होगा…मैं तो कहना चाहता था…तुम यूँ ही मम्मी की चिन्ता करती हो, उनकी तरफ से निश्चिंत हो जाओ…वे वहाँ खुश हैं।राजेश ने रेणु के नज़दीक होते हुए कहा।
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