Sunday 24 May 2015

नैसर्गिक आनंद



रणजीत आज़ाद काँझला

इंद्र देवता प्रसन्न होकर रिमझिम बारिश से धरती को नहला रहे थे। झोंपड़ियों से बच्चे बाहर निकल कर वर्षा का आनंद उठा रहे थे। वे खुशी में एक-दूसरे को छेड़कर भाग रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे भगवान स्वयं इन बच्चों में प्रवेश कर आनंद ले रहे हों।
सामने की कोठी में से एक बच्चा आया ओर बारिश में नहाने लग पड़ा। जैसे ही बच्चे की माँ की नज़र उस पर पड़ी, वह बोली, बेटा टिंकू अंदर आ जा। क्यों बारिश में भीग कर गंदा हो रहा है?…आ अंदर आकर अपनी साइकिल चला ले।
नहीं मम्मी! मुझे अंदर नहीं आना। मैं तो यहीं बारिश में खेलूँगा। मुझे बड़ा मजा आ रहा है सबके साथ खेलकर। साइकिल तो मैं बाद में भी चला लूँगा।टिंकू ने बारिश में खेल रहे बच्चों में शामिल होते हुए कहा।
यह सुनकर टिंकू की माँ के चेहरे पर भी मुस्कराहट फैल गई।
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