Sunday 9 November 2014

नई सुबह



राकेश कुमार बिल्ला

     


शहर के चैराहे में एक तरफ पानी की छबील के लिए हौद लगाई गई। शहर की अमन कमेटी ने बिगड़ते माहौल को ध्यान में रखते हुए, यह फैसला किया कि इस छबील पर किसी भी एक धर्म का चिह्न या नारा नहीं लिखा जाएगा।
      इस पर चार नल लगा दिए गए और ऊपर हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई धर्म से सम्बन्धित गुरुओं-पीरों की तस्वीरें लगा दी गईं। अमन कमेटी ने, साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए इसका नाम सरब-सांझी छबील रख दिया। लोग आते और पानी पीकर चले जाते।
      एक दिन कड़ाके की धूप में इस छबील पर काफी लोग थे। एक नल पर चार व्यक्ति लाइन लगा कर खड़े थे और बाकी तीनो नल खाली थे। उन्हें एक ही नल पर लाइन में खड़े देख एक राहगीर ने कहा, ‘‘आप धूप में लाइन लगाकर क्यों सड़ रहे हैं, दूसरी ओर सब नल खाली हैं।’’
      यह सुनकर लाइन में खड़े व्यक्तियों ने माथे पर सिलवटें डालकर उसकी तरफ देखा और कहा, ‘‘हमारे धर्म का तो यही एक नल है। बाकी तो दूसरे धर्मवालों के हैं।’’
      यही हाल दूसरे नलों का भी था। सभी ने अपने धर्म के नल बांट लिए जबकि पीछे से पानी एक ही हौद में से आ रहा था।
      अब अमन कमेटी वालों को लोगों के इस व्यवहार पर चिन्ता हुई। पर एक दिन एक बच्चे को ये रंगदार तस्वीरें बहुत अच्छी लगीं। उसने चोरी-चोरी चारों तस्वीरें उतार लीं।
      अब नई सुबह जब छबील पर कोई भी धार्मिक चिह्न वाली तस्वीर नहीं थी, लोग अपनी धुन में जिस भी नल पर जगह मिलती, पानी पीकर आसीस देते चले जा रहे थे।
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