Wednesday 11 September 2013

स्पैशल डिश



निर्मल कौर संधू

कृष्णा अपने काम पर जल्दी ही आ गई थी। उसे देख सुमन मुस्करा पड़ी और बोली, शुक्र है, आज तू समय पर आ गई, बरतन माँजने।
कृष्णा ने हँस कर कहा, आज मेरा आदमी बोलाचल तुझे रिक्शे पर छोड़ आऊँ। फिर स्टेशन जाऊँगा, सवारी लेने।
सुमन ने हैरान होते हुए कहा, अभी कल तो तू रो रही थी कि तेरे घरवाले ने बड़ी लड़ाई की। आज सुलह भी हो गई?
कृष्णा हँस कर कहने लगी, आदमी-लुगाई की लड़ाई तो पानी के बुलबुले जितने टैम ही रहती है। हम दोनों तो भूल जाते हैं, एक-दूसरे को क्या कहा था। फिर राजी हो जाते हैं। फिर पहले से ज्यादा प्यार होता है। आप ही देखो न बीबी जी, रोज मैं पैदल चल के आती थी, आज मेरे को रिक्शे पे छोड़ के गया। चाहे आज का दिन ही सही।
सुमन अपने पति सुनील से कई दिनों से खफ़ा थी। किसी बात से दोनों चार दिन से नहीं बोल रहे थे। सुमन ने महसूस किया कि यूँ ही जरा-सी बात पर, इतने दिनों से नहीं बोल रहे। कृष्णा अनपढ़ है, फिर भी कितनी समझदारी की बात कर रही है।
अब उससे रहा नहीं गया। सुनील के दफ्तर फोन कर उसने कहा, सुनील! आई एम सॉरी, वैरी सॉरी!
उधर से सुनील की मीठी आवाज़ सुनकर सुमन के मुँह पर लालिमा आ गई थी। वह सोच रही थी कि सुनील के लिए आज क्या स्पैशल डिश बनाए।
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