Sunday 28 July 2013

फालतू खर्च



हरभजन खेमकरनी

पैंसठ को पहुँच रहे बिशन सिंह को घुटनों के दर्द कारण लाठी लेकर चलना पड़ता था। उसके हमउम्र अकसर उसे घुटनों के दर्द के टोटके बताते रहते। दूर-पास के उन डॉक्टरों के बारे में बताते जिनसे उनके किसी रिश्तेदार को घुटने के दर्द से आराम मिला। वह सब को कहता कि वह उनके टोटके अजमाएगा तथा उन डॉक्टरों के पास भी जाएगा। लेकिन अपने परिवार के बारे में उन्हें कैसे बतलाता। कैसे कहता कि उसे तो सुबह चाय तक के ले कई-कई बार लाठी खड़कानी पड़ती है, खाँसना पड़ता है। जब दर्द सहन नहीं होता तो वह कोई सस्ती-सी दर्द निवारक गोली ले घर के कामों में लग जाता है। उसके कामों में समय पर पानी, बिजली, टैलीफोन के बिल भरने तथा बच्चों की स्कूल की फीस जमा करवानी शामिल थे।
बिजली का बिल और पैसे लेकर वह धीरे-धीरे लाठी के सहारे चलता बिजली-दफ्तर पहुँच खिड़की के सामने लाइन में लग गया। भीड़ चाहे कम थी तब भी कइयों ने उसे एक ओर बैठने की सलाह दी, फिर भी वह खड़ा अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा। तभी उसके पड़ोसी सतनाम सिंह ने आ उसका कंधा थपथपाया।
 क्यों? तू भी बिल भरने आया है?बिशन सिंह ने मुस्कराते हुए पूछा।
तुझे तो पता ही है कि लड़के यही समझते हैं कि बूढ़े इन कामों के लिए फिट हैं।
और दोनों ठहाका मार कर हँस पड़े।
ला पकड़ा बिल और पैसे, पर देना पूरे। कई बार बाबू रेजगारी न होने कारण बकाया पैसे वापस नहीं देते। घर वाले समझते हैं कि हमने झूठ बोलकर खुद रख लिए।
तुम रखने की बात करते हो…दो-दो बार गिनकर पूरे-पूरे पैसे देते हैं और फिर कह भी देंगे कि गिन लो। और सुना तेरे घुटनों के दर्द में उस दवाई से कुछ फर्क पड़ा जो मैने लाकर दी थी?
अभी दवा शुरु ही कहाँ की है… तुमने कहा था कि दवा दूध के साथ खानी है…यहाँ तो चाय का कप भी मुश्किल से नसीब से होता है…दवा कैसे लूँ। रात को लड़के दो-दो बोतलें उड़ा देते हैं, पर मेरे दूध के पैसे फजूल खर्ची लगती है…कहते हैं, अब कौनसा दौड़ लगानी है।
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