Tuesday 20 November 2012

चिकना घड़ा



हरभजन खेमकरनी

बी.ऐस. गिल की नेम-प्लेट पढ़ते ही अमरीक सिंह गिल ने बैल बजाई तो एक बुजुर्ग ने गेट खोला।
गिल साहब को मिलना है, दफ्तर से आया हूँ।बुजुर्ग को उसने आदर सहित कहा।
आ जाओ, बैठक में बैठे हैं।
वह बैठक की ओर हुआ तो वह बुजुर्ग भी आ गया। गिल साहिब ने अपने पिता जी से उसकी जान-पहचान करवाई, बापू जी, ये अमरीक सिंह गिल मेरे साथ ही अफसर हैं।
फिर तो ये अपने ही हुए!चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए बुजुर्ग ने कहा।
दफ्तरी मामलों से फारग हो वे दो-घूंट पीने लगे तो बुजुर्ग भी उनका साथी बन गया।
धर्मपाल की ओर से हवा में छोड़े गए अधूरे वाक्य ‘गिल साहब का गोती अफसर आ गया, अब लगेगा पता। कहते हैं न कि एक अकेला और दो ग्यारह…ने अमरीक सिंह गिल को सुबह से ही परेशान किया हुआ था। इस अधूरे वाक्य में कड़वाहट, ईर्ष्या, डर और न जाने क्या-क्या आ मिला था। शायद गोत्र-भाई समझकर ही मुझे घर बुलाया हो। तीसरे पैग के खत्म होते ही वह नशे की लोर में बोला, गिल साहब! शायद गोत-भाई होने के कारण ही आपने यह कष्ट किया हो, लेकिन जो बात चार दिन बाद कोई बताएगा, वह मैं आज ही बता देना चाहता हूँ कि मैं गिल नहीं हूँ। यह तो मेरा गाँव ‘गिल कलाँ’ होने के कारण मेरे नाम के साथ जुड़ गया।
छोड़ यार इन बातों को। पचास साल हो गए अपने को आजाद हुए, पर इस जात-गोत ने अभी भी हमें पाँच सौ साल पहले जितना ही जकड़ा हुआ है। तुम्हारी इस साफगोई ने मेरे दिल में तुम्हारी इज्जत और भी बढ़ा दी है। वैसे मुझे पहले से ही पता है कि तुम मज्हबी-गिल हो।
इतनी बात सुनते ही बुजुर्ग के माथे पर बल पड़ गए। अमरीक सिंह पैग खाली करता हुआ उठा और इज़ाज़त लेकर गेट की ओर बढ़ा। अभी वह स्कूटर स्टार्ट करने ही लगा था कि उसे काँच का गिलास टूटने की आवाज इस तरह से सुनाई दी जैसे उसे जानबूझकर दीवार पर मारा गया हो।
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