Monday 26 December 2011

सबूत


सुखदेव सिंह शांत

पुराने ऋणों को ब्याज में कुछ छूट देकर वसूल करने की मुहिम चल रही थी। इस संबंधी विशेष मीटिंगें हो रही थी।
ऐसी ही एक मीटिंग में एक गरीब और बुजुर्ग कर्ज़दार पेश हुआ।
हाँ बाबा, बताओ तुम इतने वर्षों से पैसे क्यों नहीं चुका सके?अधिकारी ने सवाल किया ताकि ब्याज में छूट के लिए कोई कारण ढूँढ़ सके।
साब जी! पहले तो मेरा जवान बेटा चला गया और फिर मुझे एक बीमारी ने दबोच लिया। घर में और कोई कमाने वाला नहीं था।
अधिकारी ने बुजुर्ग के फटे-पुराने वस्त्रों को गौर से देखा और ज़रद पड़ गए झुर्रिदार चेहरे से कहा, बाबा, तुम्हारे पास बीमारी का कोई सबूत है तो दिखाओ।
बुजुर्ग ने अपनी कमीज़ ऊपर उठाई। पेट पर लगे हुए टाँकों के निशान दिखाता हुआ वह बोला, साब जी! यह देखो, मेरा तो बहुत बड़ा आपरेशन हुआ। पंद्रह-बीस टाँके लगे थे।
अधिकारी झुँझलाकर बोला, बाबा, कमीज़ नीचे कर। हमें तो डॉक्टर का सर्टीफिकेट चाहिए, टाँके चाहे न लगे हों।
और बुजुर्ग को डॉक्टर का सर्टीफिकेट पेश करने के लिए आगे की तारीख दे दी गई।
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Monday 19 December 2011

तबदीली


मंगत कुलजिंद

कैनेडा से परिवार सहित छुट्टियाँ व्यतीत करने अपने गाँव आए कुलदीप ने शहर से बाहर जी.टी. रोड पर कार रोक ली।
अब क्या हो गया, क्यों रोक ली यहाँउसकी माँ प्रसिन्नी ने हल्के-से क्रोध के साथ बहू से पूछा।
ममा, वे सामने स्टोर से वाइन लेने गए हैं, घर पर बिल्कुल ख़तम थी׆
शराब के ठेके के आगे एक बड़ी-सी पेंटिंग लगी थी। जिसमें दो लगभग नग्न लड़कियाँ एक नौजवान को शराब का पैग दे रही थीं। उसे देखते हुए कुलदीप की नौ वर्षीय बेटी किस्स ने अपनी माँ को झँझोड़ते हुए कहा, वाह! मौम, क्या ब्यूटीफुल पेंटिंग है सामने! देखो न दो ब्यूटीफुल लेडीज और एक हैंडसम ब्वाय, जंगल में इन्जवाए कर रहे हैं…।
यैस बेटा! देखा पंजाब में भी अब ऐसी पेंटिंग्ज मिलती हैं।
पर मौम, इस में एक प्राबलम है, वे जो पेड़ की डालियाँ इनकी बॉडीज पर पड़ रही हैं न, उन से ये भद्दी लग रही हैं। पेड़ों को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
किस्स की मम्मी कुछ बोलती, इससे पहले ही प्रसिन्नी की नज़र उस पेंटिंग पर पड़ गई। मन में कुछ हीनता महसूस करते हुए  उस ने कहा, नहीं बेटा, उन वृक्षों ने कुछ गलत नहीं किया। वे तो औरत के जिस्म की भद्दी नुमाइश देख कर शर्म से पानी-पानी हो झुक गए हैं।
किस्स को कुछ समझ लगी या नहीं, पर उसकी माँ ने मन में दुहराया, ‘ये बुढ़िया ज़माने के अनुसार नहीं बदलेगी।
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Monday 12 December 2011

अपना घर


जगदीश राय कुलरियाँ

बहू की कही गई बातों के कारण वह सारी रात सो नहीं सका। सुबह सैर पर उसके मित्र ने पूछ ही लिया, क्या बात है वेद प्रकाश, आज तुम्हारा मूड ठीक नहीं लग रहा। जरूर घर पर किसी ने कुछ कहा होगा।
क्या बताऊँ भई! जब अपने जन्मे ही बेगाने हो जाएँ तो दूसरा कौन परांठे देगा। तुझे पता ही है कि रिटायरमेंट के कुछ समय बाद ही तुम्हारी भाभी तो भगवान को प्यारी हो गई थी…बस उसके बाद तो मेरा जीवन नर्क ही बन गया…।
न… बात क्या हो गई?मित्र ने पूरी बात जानने की उत्सुकता से पूछा।
बात क्या होनी थी… बस शाम को दोनों मियाँ-बीबी सिनेमा जाना चाहते थे…इसलिए जल्दी ही रोटियाँ बना कर रख दीं…बहू ने मुझे कहा– ‘पापा जी, रोटी खा लो’…।
फिर?
मैने कहा‘बेटा, मुझे अभी भूख नहीं, बाद में आने पर दे देना।’…बस मेरे इतना कहने की देर थी कि बहू का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया‘न, हमें और कोई काम नहीं…रात को आकर रोटी दें…हमने सोना भी है…हमारी भी कोई लाइफ है…न आप ठीक से जीते हैं, न दूसरों को जीने देते हैं।’…और भी बहुत कुछ कहा…बोलते-बोलते उसका गला रुंध गया।
देख भाई वेद प्रकाश! करना तो तुम अपनी मर्जी…मेरी तो यही राय है…तुम्हारे पास पैसे-टके की तो कोई कमी नहीं, पर औरत के बिना इस उम्र में आदमी की ज़िंदगी नरक बन जाती है। मैं तो कहता हूँ कि किसी ज़रूरतमंद पर चादर डाल ले…।
तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया?… मैं इस उम्र में ऐसा काम करूँगा तो दुनिया क्या कहेगी?
दुनिया की ज्यादा परवाह नहीं करते…सबको अपनी ज़िंदगी जीने का अधिकार है…और किसी वृद्ध-आश्रम में जाकर मरने से तो अपने घर में सुखी जीवन व्यतीत करना कहीं अच्छा है।
वेद प्रकाश अपने मित्र की बातों से सहमति-सी प्रकट करता अपने नए घर की तलाश में जुट गया।
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Sunday 4 December 2011

अपना-अपना हिस्सा


नरिंदरजीत कौर
अचानक घटी दुर्घटना में माँ-बाप की मृत्यु हो जाने पर, कुलजीत तो जैसे टूट ही गई थी। उसे अपना मायका तो खत्म हुआ लगता था।
माँ-बाप को गुज़रे अभी दो महीने भी नहीं हुए थे कि उसके दोनों भाइयों ने जायदाद का बँटवारा करने का निर्णय कर लिया। कुलजीत को भी सँदेश मिला। कुलजीत जानती थी कि जायदाद तो दोनों भाइयों ने आपस में ही बाँटनी है, उसे तो केवल दुनियादारी के लिए ही बुलाया गया है।
उसके पति हरजीत ने उसे समझाना चाहा, देख कुलजीत, हमें कुछ नहीं चाहिए। ऊपर वाले का दिया सब कुछ है। और न ही मैं यह चाहता कि कोई तुझे अबा-तबा बोले। इसलिए में तो कहता हूँ कि तू मत जा।
अपने पति की इस सोच के लिए कुलजीत ने मन ही मन वाहेगुरू का शुक्रिया अदा किया। पर वह देखना चाहती थी कि माँ-बाप की खून-पसीने की कमाई से खड़े महल की दोनों भाई कैसे काट-छांट करते हैं।
कुलजीत खामोशी से दोनों भाइयों को सब कुछ बाँटते हुए देखती रही। उन्होंने चम्मच-चिमटे तक बाँट लिए गए। दोनों भाइयों ने अपना-अपना हिस्सा सँभाल लिया। अंत में कुछ अनावश्यक सामान कुलजीत के हिस्से में आया। उस सामान को भरे मन से बाँहों में समेट कर वह घर लौट आई।
यह क्या है?हरजीत ने हैरान होते हुए पूछा।
यह है मेरा हिस्सा।
इतना कह कुलजीत ने अपनी शाल में से अपने माँ-बाप की तस्वीर निकाली। उसने काँपते होठों से उसे चूमा और मेज पर रख, फूट-फूट कर रो पड़ी।
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