Saturday 27 August 2011

जालों वाली छत


                                
दर्शन जोगा
आज फिर ससुर और बहू दोनों दफ्तर पहुँचे। बुजुर्ग बेचारा पहाड़सी मार का मारा, बड़ी उम्र और कमज़ोर सेहत के कारण दम लेने के लिए कमरे के बाहर पड़े बैंच की ओर हुआ। साँसोसाँस हुए ससुर की दशा देख बहू ने कहा, “आप बैठ जाओ बापूजी, मैं पता करती हूँ।
कमरे में दाखिल होते ही उसकी निगाह पहले की तरह ही पड़ी तीनचार मेजों पर गई। जिस मेज पर से वे कई बार आकर मुड़ते रहे थे, उस पर आज सूखेसे बाबू की जगह भरे शरीर वाली एक लड़की गर्दन झुकाए बैठी कागज़ों को उलटपलट रही थी। लड़की को देखकर वह हौसले में हो गई।
सतिश्री काल जी!उसने वहाँ बैठे सभी का साझा सत्कार किया।
एकदो ने तो टेढ़ीसी नज़र से उसकी ओर देखा, पर जवाब किसी ने नहीं दिया। उसी मेज के पास जब वह पहुँची तो क्लर्क लड़की ने पूछा, “हाँ बताओ ?”
बहनजी, मेरा घरवाला सरकारी मुलाजम था। पिछले दिनों सड़क पर जाते को कोई चीज फेंट मारी। उसके भोग की रस्म पर महकमे वाले कहते थे, जो पैसेपूसे की मदद सरकार से मिलनी है, वह भी मिलेगी, साथ में उसकी जगह नौकरी भी मिलेगी। पर उस पर निर्भर उसके वारिसों का सर्टीफिकट लाकर दो। पटवारी से लिखाके कागज यहां भेजे हुए हैं जी, अगर हो गए हों तो देख लो जी।
क्या नाम है मृतक का?” क्लर्क लड़की ने संक्षेप और रूखी भाषा में पूछा।
जी, सुखदेव सिंह।
कुछ कागजों को इधरउधर करते हुए व एक रजिस्टर को खोल लड़की बोली, “कर्मजीत कौर विधवा सुखदेव सिंह?”
जी हाँ, जी हाँ, यही है।वह जल्दी से बोली जैसे सब कुछ मिल गया हो।
साहब के पास भीतर भेजा है केस।
पास करके जी?” उसी उत्सुकता से कर्मजीत ने फिर पूछा।
न...अ..अभी तो अफसर के पास भेजा है, क्या पता वह उस पर क्या लिख कर भेजेगा, फिर उसी तरह कारवाई होगी।
“बहन जी, अंदर जाकर आप करवा दो।
अंदर कौनसा तुम्हारे अकेले के कागज हैं, ढे़र लगा पड़ा है। और ऐसे एकएक कागज के पीछे फिरें तो शाम तक पागल हो जाएँगे।
देख लो जी, हम भगवान के मारों को तो आपका ही आसरा है।विधवा ने काँपते स्वर में विलापसी मिन्नत की।
तेरी बात सुन ली मैने, हमारे पास तो ऐसे ही केस आते हैं।
औरत मनमन भारी पाँवों को मुश्किल से उठाती, अपने आपको सँभालती दीवार से पीठ लगाए बैंच पर बैठे बुज़ुर्ग ससुर के पास जा खड़ी हुई।
क्या बना बेटी?” उसे देखते ही ससुर बोला।
बापूजी, अपना भाग्य इतना ही अच्छा होता तो वह क्यों जाता सिखर दोपहर!
बुज़ुर्ग को उठने के लिए कह, धुँधली आँखों से दफ्तर की छत के नीचे लगे जालों की ओर देखती, वह धीरेधीरे बरामदे से बाहर की ओर चल पड़ी।
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Saturday 20 August 2011

जुर्म का सहम


अव्वल सरहदी

उसकी पहले दो लड़कियाँ थीं। उसका पाँव फिर से भारी था। सभी ने टैस्ट करवाने के लिए कहा। पहले तो वह न मानी, पर जब टैस्ट करवाया तो फिर लड़की। अब वह दुविधा में थी कि क्या करे और क्या न करे।
 बुजुर्ग सफाई के हक में नहीं थे। कह रहे थे कि बच्चा चार माह का हो गया है, सफाई न करवाएँ। परंतु बाकी सब हक में थे, यहाँ तक कि उसका पति भी यही चाहता था।
एक प्राइवेट अस्पताल में उसे दाखिल करवाया गया। बहुत बढ़िया कमरे और फर्नीचर। डॉक्टर ने इंजैक्शन दे दिया और दो दिन अस्पताल में रहने को कहा।
सायं को वह एकाएक निढाल-सी हो गई। पसीना आने लगा, घबराहट बढ़ गई। डॉक्टर को बुलाया गया। उसने सब कुछ ठीक बताया और घबराहट दूर करने के लिए दवा दे दी।
मामूली घबराहट है, ठीक हो जाएगी।कहकर डॉक्टर चला गया।
लेकिन उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई। पसीना लगातार आ रहा था। घबराहट भी बनी हुई थी। घरवाले और परेशान हो गए।
पहले तो वह चुप थी, पर कुछ समय बाद सामने दीवार पर लगी एक बच्चे की तस्वीर की ओर इशारा करके चीखते हुए बोली, इस तस्वीर को हटा दो, इसे मेरे सामने से हटा दो!
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Friday 12 August 2011

खुशी की सौगात


सुधीर कुमार सुधीर

बाबू ज्ञान चंद की तनख़ाह कम थी और कबीलदारी पूरी। जब तनख़ाह मिलती तो ढ़ेर सारे बिल तथा अन्य खर्चे निकल आते। तनख़ाह में से कुछ बचा पाना कठिन कार्य लगता। माँ की दवा, बच्चों की फीस, राशन व दूध के बिल, मकान का किराया व अन्य छोटे-मोटे खर्चों में तनख़ाह पूरी हो जाती। बच्चों की फरमाइशों से डरता वह उन्हें बाज़ार ले जाने में भी झिझकता। पिछले कई माह से पत्नी एक साड़ी की माँग करती आ रही थी। लेकिन हाथ तंग होने के कारण टाल-मटोल हो रही थी।
उसे पत्नी के साथ बाज़ार गए एक मुद्दत हो गई थी। आज तनख़ाह मिली तो पत्नी उसके साथ मंदिर जाने की ज़िद्द करने लगी।
मंदिर के लिए चले तो बाबू ज्ञान चंद को ख़याल आया– ‘मंदिर तो एक बहाना है, जब वापस आएँगे तो बाज़ार में यह साड़ी लेने के लिए कहेगी। साड़ी कहाँ से?…पूरा बजट हिल जाएगा, सारा महीना कैसे निकलेगा?’
तभी उसकी पत्नी ने उसकी बाँह हिलाई और बोली, देखो बाज़ार में कितनी रौनक है! कभी-कभी बाज़ार ले आया करो…ज़रूरी नहीं कि बाज़ार खरीदारी के लिए ही आया जाए।
पत्नी की बात सुनकर बाबू ज्ञान चंद का उतरा चेहरा चमक उठा। वह पत्नी का हाथ दबाते हुए बोला, हाँ, तुम ठीक कहती हो। बाज़ार में खुशी का मोल तो नहीं लगता।
दोनों पति-पत्नी मंदिर जाकर घर लौट आए।
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Saturday 6 August 2011

पेपर-मार्किंग

अश्वनी शोख
‘स्कूल शिक्षा बोर्डकी ओर से आए वार्षिक परीक्षा के पेपरों की टेबल-मार्किंग हो रही थी। वह एक के बाद एक, तेज गति से पेपर-मार्क कर रहा था। जल्दी ही उसने पेपरों का एक बंडल खत्म कर दूसरा शुरू कर लिया।
सर जी! मैंने आप की प्रवीणता-तरक्की के बकाये का बिल बना दिया है, आप जरा नज़र मार लेते।स्कूल के क्लर्क ने आकर उसकी मार्किंग गति में बाधा डालते हुए कहा।
ओ यार कुलवंत! यह बकाया के बिलों का काम बड़े ध्यान से करने वाला होता है। यह काम हम कल करेंगे। आज मैं अपनी ऐनक घर भूल आया।
इतना कह वह फिर उसी गति से पेपर-मार्क करने में  जुट गया।
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